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गोपेश्वर में तीन दिवसीय विकेंद्रीकृत वन प्रबंधन हेतु वन पंचायतों का प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ आयोजन

वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय की परियोजना "मध्य हिमालय में विकेन्द्रीकृत वन प्रबंधन आजीवका एवं नीति के तिगत सुझाव" के अंतर्गत गोपेश्वर में तीन दिवसीय विकेंद्रीकृत वन प्रबंधन हेतु वन पंचायतों का प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया I इस परियोजना के मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के वन पंचायत नियमावली का अध्ययन, सुधार की आवश्यकताओं, नीतिगत मुद्दों, समुदाय को सशक्त करने के विकल्प, वन पंचायत के रिकॉर्ड का रखरखाव, कामकाज का लेखा जोखा तथा विकेंद्रीकृत वनों से संबंधित अन्य पहुलुओं का अध्ययन शामिल है l जिसके लिए समय-समय पर हुए वन पंचायत नियमावली संसाधनों का अध्ययन और पंचायती वनों के प्रबंधन प्रभावशीलता की तुलना आरक्षित वनों के प्रबंधन प्रभावशीलता से किया जा रहा है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम गोपेश्वर स्थित अलकनंदा मृदा संरक्षण प्रभाग के मीटिंग हॉल में 11 मार्च से 13 मार्च 2024 तक गढ़वाल विश्वविद्याल्य के वानिकी और प्राकृतिक संसाधन विभाग द्वारा किया गया. इस अवसर पर विभाग के प्रमुख अध्यक्ष डॉ आर सी सुंदरियाल द्वारा वनो का महत्त्व और उनसे हो रहे, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ, रेगुलेटिंग एवं सपोर्टेएनजी सर्विसेज़, देश एवं प्रदेश स्तर पर वन स्थिति, वन जैव विविधता एवं जलवायु संतुलन, वन अनेक प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है और कैसे हम अपने वन के संसाधन को उपयोग में लाकर हम अपनी वन पंचायत की आय में समृद्धि कर सकते है पर चर्चा की।

सामाजिक कार्यकर्ता हेम गैरोला द्वारा वन पंचायत के इतिहास और उनसे सम्बन्धी नियम कानून, उनके बदलाव के बारे में बताया साथ ही लोगो के अधिकार की विस्तृत रूप से बताया गया, जोड़ दिया गया की सरपंच अपने अधिकारों को पहचाने, युवा पीढ़ी को वन पंचायत से जोड़ने और फ्यूचरिस्टिक अप्रोच को अपनाने अथवा वन पंचायत से जुड़े राजस्व और वन विभाग के मुख्य कार्यों के संतुलन को नीतिगत तरीके से सही करने पर जोर दिया।
अलकनंदा मृदा संरक्षण प्रभाव गोपेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी सर्वेश कुमार दुबे और नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व गोपेश्वर के प्रभागीय वन अधिकारी बी. बी. मर्तोलिया ने सभा को संबोधित करते हुए वन सचिव अथवा वन पंचायत सरपंचों को नियमावली का अध्ययन, कुटकी और झूला जेसे गैर काष्ठ वन उत्पाद अथवा वन पंचायत को सशक्त करने के लिए गैर कास्ट उद्योग से अर्जित आय से रॉयल्टी देने से जुड़ी जानकारी साझा की।
कार्यशाला में 35 विभिन्न वन पंचायतों के 60 लोगों ने भाग लिया और साथ ही वन विभाग के लगभग 30 वन कर्मी शामिल हुए।
इसी दौरान सरपंचो ने वन पंचायत की महत्वपूर्ण समस्याओं जैसे वन विभाग के साथ तालमेल, वन पंचायत के मुख्य कार्यों की जानकारी, आजीविका, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण अथवा वन पंचायत में रोजगार जैसी समस्याओं पर प्रकाश डाला। साथ ही वन विभाग के कुछ अधिकारी और वन कर्मीयो ने भी अपना सहयोग दिया जिसमे वन कर्मियों द्वारा वन पंचायत की सीमा चिन्ह पर और जंगलों की आग जैसी घटनाओं पर प्रकाश डाला।

कार्यशाला के दौरान नगरीय वन पंचायतों में हो रहे सॉलिड वेस्ट डंपिंग और अतिक्रमण जैसी समस्याएं देखने को मिली जिनके संबंध में वन पंचायतों के हित के लिए सरकार की कोई महत्वपूर्ण नीति नहीं है जिस पर ध्यान देने की अति आवश्यकता है।

समापन के अवसर पर प्रो० आर.सी. सुंदरियाल द्वारा वन कर्मियों अथवा वन पंचायत सदस्यों के क्षमता विकास अथवा कुछ बेहतरीन मॉडल वन पंचायतों की पहचान करना ताकि प्रदेश में मौजूद लगभग 11400 वन पंचायतों को प्रेरणा मिल सके।

कार्यशाला के दौरान डॉ० मंजू सुंदरियाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, (USERC), डॉ सी पी कुनियाल, वैज्ञानिक HRDI, Mandal), जी. एस. बिष्ट डी. एल. एम,जिला चमोली, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर राजीव बिष्ट, वन क्षेत्राधिकारी अनुराग जुयाल, सामाजिक कार्यकर्ता ओ. पी. भट्ट, विनय सेमवाल ,शोध छात्र आलोक सिंह रावत, अक्षय सैनी और रेखा राणा इत्यादि मौजूद रहे।

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